ग़ज़ल - दिन रात मुझे याद यूँ आया न करो तुम
ग़ज़ल - दिन रात मुझे याद यूँ आया न करो तुम
दिन रात मुझे याद यूँ आया न करो तुम।
हर वक़्त यूँ तड़पा के सताया न करो तुम।
दिन भर तो मुझे नींद नहीं होती मयस्सर,
आ ख्वाब में हर रात जगाया न करो तुम।
इक वक़्त था मुस्कान हमेशा थी लबों पर,
वो वक़्त मुझे याद दिलाया न करो तुम।
ताज़ा हैं अभी तक ये मेरे घाव जिगर पर,
जख्मों पे नमक मिर्च लगाया न करो तुम।
लगता है तेरे दिल में कहीं कुछ तो बचा है,
जो भी है दिल में वो छुपाया न करो तुम।
इस वक़्त से बढ़कर है नहीं कुछ भी यहाँ पर,
बेकार की बातों में गँवाया न करो तुम।
माना कि तेरे दिल में नहीं इश्क़ मेरा अब,
अपना जो कभी था वो पराया न करो तुम।

