सुभद्रा का आर्तनाद
सुभद्रा का आर्तनाद
यशुदानंद की राजदुलारी सुभद्रा न्यारी,
अर्जुन लाये हरण कर जनसमूह मझारी।
हुआ था तब भी कोलाहल वीरो भारी
बलरामकृष्ण की इकलौती बहन प्यारी
वही सुभद्रा पुत्रशोक से आज है व्यथित,
चीत्कार सुन नीरव सन्नाटा हुआ थकित।
हा पुत्र ,लाल,कहां? कह वह रो रही थी,
याद में आंचल को पय से भिगो रही थी।
मुझ अभागिनी की कोख से पैदा हुआ,
पिता सम वीर होकर ,कैसे मारा गया ?
सुनेत्र,गौरवर्ण,धवल दंतपंक्ति शोभित,
युद्ध पंक धूमिल,छतविछत,धारशोणित
वाणविद्ध कर छल से गया तुझे था मारा,
सप्त महारथियों ने निहत्थे एक को घेरा।
वृष्णि पांचाल वीरों के होते छला गया,
शिथिल प्रत्यंचा,कैसे निश्चल हो गया ?
समरभूमि में विदुरनीति,खो हुयी क्षीन?
सत्यप्रियता युधिष्ठिर की हुयी शब्दहीन
धिक्कार भीम के गदाबल के पौरुष को
धनुर्धर अर्जुन के दप्त वीर पराक्रम को
पितामह भी धृतराष्ट्र सम दृगहीन हो गये,
द्रोणाचार्य स्वगुरुत्व पद मर्यादा भूल गये।
माधव तुम्हारे सम्मुख लाल जीवन हारा,
बहन की राखी का कर्ज क्यों न उतारा ?
मेंहदी सजे हाथ,उत्तरा करुणक्रन्दन करे,
रुदन से उसके दिग्दिगंत भावविह्वल भरे।
उम्र षोडश में जीवंत वीरता से वैरी हिले,
पुत्र का मुंह देखे बिना छोड़ मुझ को चले।
कोई तो मेरे लाल को उठा कर बैठा दे
सूनी गोद की जोती को हौले से हिला दे।
कैसा विधि का कुचक्र चक्रव्यूह जो रचा,
आज पा वीरगति कुरुवंश का चांद चला।