प्यार का सफर उर्मिला का
प्यार का सफर उर्मिला का
यह कैसा मेरे प्यार का सफर
उर्मिला तक रही है सूनी डगर
दूर है प्रिय प्रभु चरणों के पास
बैठे वीरासन तकें कोमल घास
मेरे करीब होकर वे नहीं करीब
प्यार का सिंदूर कैसे कहूँ रकीब
पूछूँ प्रश्न उनसे कोई नहीं उत्तर
प्रश्न का उत्तर देना होता दुष्कर
जानूं उनकी प्रेमिका हमसफर
यह दिल मानता नहीं उम्र भर
प्रीतम की याद में बाट जोहती
हर आहट मन को यूं कचोटती
बीते सफर बिन पलकें झुकाये
मैं रही सोती उन्हें नैनों में बसाये
तुम न सफर में संग प्यार है तेरा
करता स्वप्न सफर जिया ये मेरा
वर्ष 14 तरसी देखने को नजर
कब आयें प्रियतम अपने नगर
कोई मिले धूप, कोई सजे छांव
कोई शयन सेज, कोई छाले पांव
यह मेरी मिट्टी की कंचन काया
इसमें तेरे प्यार का जादू समाया
और क्या रही वे बची मेरे आस
बस एक तेरे मिलन की है प्यास
दोष तो किसी का न था किंचित
अपने कर्मों की थी माया सृजित
कोई जग में चुनता मधुमय फूल
किसी के हिस्से आये कंटक शूल
