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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

4  

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

सत्यानाश कर दिया

सत्यानाश कर दिया

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तुमनें पहले फूल तोड़े, कुछ सूंघे, कुछ मसले 

कुछ मंदिर में चढ़ाये, कुछ प्रीतम के गजरे में सजाये 

फिर तुमनें पत्तियाँ तोड़ी, मसली, फेंकी 

फिर तुमनें टहनियों को तोड़ा 

कभी छड़ी बनाकर पीटा, कभी बेचकर धन कमाया, खाना पकाया 

और ये क्या अब तुम तना ही काटने लगे 

इतना लोभ बढ़ गया कि तुम तना ही काटने लगे और काटते काटते इतना लोभ बढ़ गया 

कि तुमने जड़ सहित काट डाला हरा भरा वृक्ष 

इस तरह तुमने नष्ट भ्रष्ट कर दिया स्वयं को 

चढ़ाना ही था, सजाना ही था तो श्रद्धा सुमन अर्पित करते 

क्या तुमनें अपने शरीर के हिस्से निकालकर 

इस तरह अर्पित किया कभी किसी को 

कभी दी किसी को आंखें किसी को किडनी किसी को जान, किसी को जुबान 

अगर देते तो पुज रहे होते 

तुमने न अपना मोल समझा न प्रकृति का 

प्रकृति रूठी, तुम टूटे 

सब सत्यानाश कर दिया तुमने. 


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