"सत्य-शूल"
"सत्य-शूल"
आईने जैसे कभी झूठ नहीं बोलते हैं
मित्र भी वैसे झूठी बाते नहीं बोलते हैं
झूठ के तराजू में सत्य वो ही तोलते हैं,
अपनी हकीकत को झूठ से छोड़ते हैं
एकदिन ऐसे लोग औंधे मुंह गिरते हैं,
जो दिखावे को ही जिंदगी बोलते हैं
वो झूठी तारीफों से बड़े खुश रहते हैं
जो हकीकत-रोशनी से मुँह मोड़ते हैं
आईने जैसे कभी झूठ नहीं बोलते हैं
मित्र भी वैसे झूठी बाते नहीं बोलते हैं
उन्हें बड़ाई करनेवाले आदमी चाहिए,
जिन्हें सच्चे मित्र जग में चोर बोलते हैं
एकदिन बड़े जोरों से रोते-बिलखते हैं
जिसदिन वो झूठी दुनिया को छोड़ते हैं
पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं,
जब तक वो झूठे आईने को तोड़ते हैं
आईने जैसे कभी झूठ नहीं बोलते हैं
मित्र भी वैसे झूठी बाते नहीं बोलते हैं
दुःख के समय आंसू वो ही पोंछते हैं
जो सत्य को दोस्ती का प्राण बोलते हैं
झूठी तारीफों से तू सदा बचना साखी,
सत्य-शूल ही अंत में सहीमार्ग खोलते हैं।