सत्य पिसता चक्की में...
सत्य पिसता चक्की में...
सत्य की कसौटी पर उतरना,
यूं आसान नहीं होता,
कष्ट सहने होते अनेक,
फिर जाकर उस लक्ष्य की ओर बढ़,
सत्य की कसौटी पर खरे उतरते,
यूं आसान नहीं होता,
अपनी बात को सत्य रूप में प्रकट करना,
जीवन भर परिश्रम करना होता,
तब जाकर कोई विश्वास कर पाता,
यूं आसान नहीं होता,
जो सच है उसे न्याय मिले,
यहां तो झूठ को सच साबित कर,
सत्य की परिभाषा बदली जाती,
वकीलों की बहसों में,
सत्य की चक्की पिसती रहती,
तब जाकर निष्कर्ष निकलता,
और कई बार सत्य हार जाता,
अन्यायी लोगों का बोलबाला ऐसा है,
कि कभी कभी सत्य भी छिप जाता,
पर सत्य इतना कमजोर नहीं,
एक दिन सामने जरुर आता,
पर शायद तब तक मासूमों को सजा मिल जाती,
और अपराधी खुले आम घूम रहे होते,
क्योंकि सत्य को सिद्ध करना,
यूं आसान नहीं होता।