STORYMIRROR

Antariksha Saha

Tragedy Action Others

4  

Antariksha Saha

Tragedy Action Others

सतत संग्राम

सतत संग्राम

1 min
192

सतत संग्राम ज़िन्दगी का अंग बन गए है

मज़दूर हूँ मजबूर नहीं

लॉकडाउन का बहाना दे के तुमने मेरी नौकरी छीनी

भूखे हम है तो भोजन छिना भी जा सकता है

किसान हूँ मेरे उत्पाद का दाम कॉर्पोरेट ठीक करेंगी

10 रुपए की मकई 200 रुपए में तुम बेचोगे

हमारे हक़ को मारोगे और हमें अदृश्य विकास की

कहानी सुनाओगे और हम मान जाएंगे

पहले जमींदार थे जो हम पर शोषण करते थे

अब कोरोर्पोरेट के हाथों तुम हमें बेचोगे

भूल ना जाना हम किसान है

भूख जो तुम्हें लगती है तो हम अन्न संस्तान है

हम बंजर ज़मीन पर अपने खून से

फसल उगा सकते है

तो हम इस बहरी सरकार के लिए

धमाका भी कर सकते है

जितने भी जल कमान तुम चलाओ

पेलेत गन की बौछार तुम करोगे

उतने हमारे हौसले बुलंद होंगे

जय मज़दूर जय किसान 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy