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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

मजदूरों की अजब कहानी

मजदूरों की अजब कहानी

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इन मजदूरों की भी अजब कहानी है

सबको दिखता यह मजबूर प्राणी है


जब-जब भी आता चुनावों का दौर,

फिर याद आती नेताओं को ढाणी है


वरना कौन पूंछता? मजदूरों को,

स्वार्थ न हो तो सब देते गाली है


इन मजदूरों की भी अजब कहानी है

मेहनत करके भी भूखी जिंदगानी है


इन मजदूरों का सब शोषण करते,

दुनिया के सब सेठ और सेठानी है


मजदूरों को देखते ही कहते है,

यह लोग तो बदबू भरा पानी है


सब इंसां को रब ने एक बनाया,

क्यों हमारे व्यवहार में पानी है?


इन मजदूरों की अजब कहानी है

अपने घर पराई इनकी वाणी है


मत सताओ लोगो,इन मजदूरों को,

ये खुदा के दिल से निकली वाणी है


तन के कपड़े,भले इनके गंदे है,

भीतर बहता इनके साफ पानी है


जो देते है,ये अंतर्मन से कोई दुआ,

उसकी सुधर जाती,ये जिंदगानी है


उसके फिर न मिलती कोई हानि है

इनकी दुआओं में जादू का पानी है


इन मजदूरों की भी अजब कहानी है

अपने लोगो से मिलती इन्हें परेशानी है


इनको सतानेवालों ज़रा तुम सोच लो,

इनके दिल से गर निकली बुरी वाणी है


याद आ जायेगी अमीरों तुम्हे नानी है

खत्म होगी जल्द तुम्हारी कहानी है


उसे पैसा पसीना सूखने से पहले दो,

यह बात जरूर हृदय में अपनानी है


इन मजदूरों की भी अजब कहानी है

फटे वस्त्रों में दिखती मजबूरी पुरानी है


नेताओं छोड़ो अब इन्हें मूर्ख बनाना,

इनके लिये चलाओ शिक्षा वरदानी है


मजदूर पढ़ेगा तभी देश आगे बढ़ेगा,

ये बनाएंगे हिंद बगिया बहुत सुहानी है


इन मजदूरों की भी अजब कहानी है

भाइयों बिना अधूरा हर हिंदुस्तानी है।


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