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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

क्रोमा है भई क्रोमा है बुरा न

क्रोमा है भई क्रोमा है बुरा न

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@*क्रोमा है भई क्रोमा है बुरा न मानो क्रोमा है*@


अभी हाल फ़िलहाल में 

लगभग 13 महीनों के 

छोटे से काल में 

सम्पूर्ण जगत ने 

इतना दुःख देख लिया है ।।


कि शायद ही कोई 

अब दुख की सीमाएं 

चिन्हित कर पायेगा

 जब जब बात चलेगी

 दुःख की बस हर व्यक्ति 

नयनों में आँसू भर लाएगा।।


सदियों से देखा है हमने

 4 दुखी तो 14 समझाने आते थे ।।

कोई जीवन त्याग चले तो 

40 संस्कार को ले जाते थे।।

इससे भी अधिक संख्या में 

शांति पाठ पर आते थे 

द्रवित हृदय से पीड़ित जन को

 ढाढ़स सभी बंधाते थे ।।

धीरे धीरे दिवंगत आत्मा 

प्रभु चरणों में स्थापित 

हो जाती थी 13 दिन का 

सन्धिकाल धार्मिक विधि से निभाते थे ।।


आज व्यवस्था मजबूरी की दिवंगत जन से दूरी की 

आज व्यवस्था मजबूरी की दिवंगत जन से दूरी की

अपना जीवन रख सुरक्षित संक्रमण से बचने की ।।



संवैधानिक नियम नए हैं 

अनोपचारिक विधि अलग हैं 

जैसे तैसे झटपट झटपट 

ये अंतिम कर्म निबटाये जाते हैं&

nbsp;

किसी किसी धर्मो के मृत प्राणी 

तो मशीनों से दफ़नाए जाते हैं

रुग्ण जन को रुग्णालय नही 

रुग्णालय है पर बिस्तर नही 

बिस्तर है तो चिकित्सक व्यवस्था नही ।।


ये सब भी हो तो प्राणवायु नही 

और तो और प्राणवायु है तो

पर जहां चाहिए वहाँ उपस्थित नही ।।


आधे से ज्यादा तो भाई 

सूखे ही लौटाए जाते हैं

प्रभु सहारे छोड़ उन्हें 

ऑनलाइन घसियाते हैं ।।



टीका करण अभियान चलाया 

देश अभी सजग भी न होने पाया 

उत्पादन का 40 प्रतिशत तो 

भाई दान दक्षिणा में भिजवाया ।।


युवा वृद्ध सभी भटक रहे 

डेट मिले कोई डेट मिले

ऑनलाइन पर सब 

विधि है छोड़ी 

कौन बताए इनको भाई

78%तो हैं अभी अनपढ़े ।।


अभी हाल फ़िलहाल में 

लगभग 13 महीनों के 

छोटे से काल में 

सम्पूर्ण जगत ने 

इतना दुःख देख लिया है ।।


कि शायद ही कोई 

अब दुख की सीमाएं 

चिन्हित कर पायेगा 

जब जब बात चलेगी 

दुःख की, बस हर व्यक्ति

 नयनों में आँसू भर लाएगा।


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