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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

इंसानियत

इंसानियत

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मानवता के लिये जिसने जीवन निसार किया

अपनी मौत को जिसने खुद ही संवार लिया

ऐसी पुण्यात्मा को नमन करता है,हिंद देश

जिसने मरकर भी एक युवा को जिंदा किया


में बात कर रहा स्वयंसेवक नारायणजी की,

जिन्होंने मिशाल कायम की इंसानियत की,

जब एक युवा के बेड की व्यवस्था नही हुई

उन्होंने अपना बेड देकर दी उसे नई जिंदगी


पीछे वो इस सरकारी व्यवस्था पे प्रश्न छोड़ गये,

क्यों इस खराब व्यवस्था से वो सांसे तोड़ गये?

क्या उनको और जीने का अधिकार नही था,

क्यों वो सरकारी लाचारी से जिंदगी छोड़ गये,


कोरोना महामारी में भी वो इंसानियत दिखा गये,

क्यों मुझे लगता पंगु सरकारीतंत्र से वो मर गये,

अब तो साखी ये सरकारें अस्पतालों की सुध ले

फिर और कोई नारायणजी जैसे फरिश्ते यूँ न मरे


आप भी हिंद की जनता सही नेता का चुनाव करे,

जो बस जनता के लिये जिये,जनता के लिए मरे,

ऐसा न हो दूबारा की हम फिर से शूलों पे पैर धरे

ऐसे नेता को हम दोस्तो अपने यहां का राजा करें


जब भी प्रजा की आंखों से एक बूंद भी आंसू गिरे,

वो गद्दी छोड़कर प्रजा के लिये रात-दिन एक करे,

तब ये कोरोना-वोरोना उसकी एक दहाड़ से डरे,

गर नेता प्रजा के लिये खुद का सर्वस्व त्याग करें


सरकारी तंत्र की लाचारी से फिर कोई औऱ न मरे 

इंसानियत के नाम पे कोई देवतुल्य मनु यूँ न मरे

उठो, जागो, कोरोना से घातक पंगु तंत्र ही बस मरे

ऐसे तंत्र को बदलो, ताकि कोई औऱ व्यक्ति न मरे।


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