कैसा ये काल आया ....
कैसा ये काल आया ....
कैसा ये काल आया
दुःख बीमारी आँसुओं का सैलाब आया
माना मृत्यु शाश्वत है
पर अकाल मृत्यु ने क्यों इतना तांडव मचाया
क्यों नहीं रुकता ये मातम
क्यों नहीं थमते कोरोना के बढ़ते ये क़दम
इसने अपनों को है छीना
इसने सपनों को है छीना
इसने रिश्ते नातों को है छीना
इसने अपनों को ही बना दिया पराया
क़ुदरत का नहीं है ये कहर
तबाह हो रहे सभी छोटे बड़े सभी शहर
इसने साँसों पे मानो पहरा लगाया
ऑक्सीजन की कमी से देह को कमज़ोर बनाया
पल पल प्रतिपल स्वस्थ व्यक्ति को ये सर्प रूप
में डस रहा है
उसके प्राणों को मानो अपनी कुंडली से कस रहा है
पर सरकार के नुमाइंदों को नज़र नहीं आ रहा है
उनके लिए तो मौत का बस आँकड़ा कुछ बढ़ रहा है
नहीं देख पाते कि आम आदमी कैसे
उखड़ती साँसों से बेबस लाचार होकर
खुद से ही वह लड़ रहा है
कहाँ हैं मंत्री ? कहाँ हैं सरकार ?
ऐसे मंत्रियों पर क्यों न करे जनता धिक्कार
क्या रसातल में छिप गए शुतुरमुर्ग की तरह
या कि बाँध ली पट्टी आँखों पे गांधारी की तरह
या कानों में गूंजता नहीं लोगों का स्वर न उनकी पुकार
स्वास्थ्य व्यवस्था की धज्जियां जो उड़ रही हैं
अस्पतालों की कुव्यवस्था की बखिया भी उघड़ रही है
क्या नहीं कानून जो रक्षक बनकर आज आए
जान जोख़िम में है जिसकी पहले उसको हम बचाएँ
कालाबाजारी को रोकने को तुरंत कोई एक्ट लगाएँ
थमती साँसों को थमने से पहले ही बचाएँ
काश कि बस आंकडो से पहले ये सोच ले कि
महज़ सँख्या नहीं है व्यक्ति
वह है सम्पूर्ण इकाई
इस कठिन परिस्थितियों में इंसान न बने सौदाई
आपदा ये बहुत बड़ी है समस्याएँ मुँह बाए खड़ी है
इस अंधकारमय घड़ी में कोई तो उम्मीद की किरन
को जगाने का बीड़ा उठाओ
अस्वस्थ लोगों को स्वस्थ करने के लिए आशा का संदेश
लाओ नकारात्मक विचारों की केंचुली को त्यागकर
सकारात्मक विचारों से नवीन ऊर्जा जगाओ
अपने अस्वस्थ भारतवासियों को स्वस्थ तनमन का
जज़्बा जगाएँ एक नवीन रीति चलाएं
एक विश्वास की किरण से आसपास की उदासी को
हराएँ हम स्वस्थ हैं हम स्वस्थ होंगे हम कोरोना
से जल्द ही मुक्ति पाए।
