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राजकुमार कांदु

Abstract Tragedy Inspirational

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राजकुमार कांदु

Abstract Tragedy Inspirational

पापा कब आएंगे ?

पापा कब आएंगे ?

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एक दिन शहीद का बेटा यह बोला

”बतलाओ माँ ! पापा घर कब आयेंगे ?

लायेंगे कब मेरे सुन्दर खिलौने

कपडे नए क्या नहीं लायेंगे ? ”


”देखूंगा कब अपने पापा को जी भर

सीने से मुझको वो कब लगायेंगे

चुप ना रहो माँ तुम कुछ तो बोलो

इतना बता दो ! पापा कब आयेंगे ? ”


” आती नहीं याद उनको हमारी

कैसे हम उनको भुला पाएंगे

बीता दशहरा दिवाली है आई

पापा बीन कैसे हम मुस्कायेंगे ”


सुनकर जिगर के टुकडे की बोली

पीकर के आंसू बंद पलकें है खोली

“दुश्मन करें हैं नित हमले हमीं पर

घुसने न देंगे हम अपनी जमीं पर

पापा ने तेरे है मन में ये ठाना ”


यूँ ही उस माँ ने बनाया बहाना

” करते हैं पापा सीमा पे रखवाली

तभी हम मनाते हैं देश में दिवाली

पापा कहाँ हैं माँ मुझको बतलाओ

कुछ मैं भी करूँ मुझे रास्ता दिखलाओ ”


रोते हुए माँ ने बेटे को गले से लगाया

पुचकारा दुलारा फिर उसको बताया

” सीमा पर पापा थे तेरे जब ठहरे

जवानों संग सीमा पर देते थे पहरे


नापाक साजिश रची पाक ने

और दे ही दिया हमको जख्म ये गहरे

धोखे से हमला किया धोखे से मारा

वतन पे कुर्बान हुआ देश का दुलारा

पापा नहीं उनकी याद आएगी


याद आएगी और बस याद आएगी ”

सुनकर ये बातें वो नन्हा मुस्काया

पोंछा है आंसू और माँ को समझाया

”चुप हो माँ मुझको बड़ा होने दो

पाँव पे अपने खड़ा होने दो


पापा ने छोड़ा जो काम है अधुरा

करता हूँ वादा करूँगा वो पूरा

सीमा पर जाके कहर ढाहूँगा

एक के बदले मैं सौ मारूंगा ”

पोंछा है आंसू फिर माँ भी ये बोली


”दुश्मन के लहू से अब खेलेंगे होली

दुश्मन को घर में घुस के मारेंगे

सीमा पर हम ना कभी हारेंगे

सीमा पर हम ना कभी हारेंगे।


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