सर्द की भोर
सर्द की भोर
कोहरे की चादर लपेट
धुंध के सिरहाने से
मतवाली धरती
इंतजार कर रही सूरज का
सूरज भी तो है आज
शरारत के मूड में
ओढ़ मफलर
खुद को ढंक कर
लुका छिपी खेल रहा
सर्द की ये सुहानी भोर
तलब जगा रही चाय की
मन अलसाता
खुद को समझाता
मोह बिस्तर का
अहसास जगाता
कुछ न करने की ठान लिया
मौसम की ये ठंडक भी
जीवन के रंग दिखाती है
ठहर कर पल दो पल
फिर लौट अपने घर जायेगी
यादों के झरोखों से झांक झांक
फिर मुस्काएगी शर्माएगी
चलो चुरा ले कुछ पल
फुरसत के।।