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Shweta Mishra

Abstract

3.4  

Shweta Mishra

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अजनबी

अजनबी

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मैं उनके जैसा कपड़े भी पहन लेता,

उनके बीच बैठ उनसे बातें भी कर लेता,

तब्भी मैं क्यों उनमें शामिल नहीं होता,


क्या करूँ साहब अजनबी हूँ अजनबी जो ठहरा,

मैं उन लोगों में घुलने की कोशिश करता हूँ

परंतु वो लोग मुझे आपस में मिलने नहीं देते,


पर्दे वाली दुनिया में कैमरों की चमक पर और

मोबाइल से दिखावे वाली सेल्फी में ले तो लेते,


परंतु पर्दे के पीछे वाले दुनिया में मुझे अंदर ही नहीं लेते,

क्या करूँ साहब अजनबी हूँ अजनबी जो ठहरा !   


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