सर्द ए आलम अजब
सर्द ए आलम अजब
सर्द का आलम अजब
बंद कर दरवाज़े - खिड़की...
रजाई ओढ़ सोई पावनी
ये तो अभी हुआ,
सुबह कैसे आंगन में कूद रही थी
बतरान से न भई बंद
अब तो हो चुपचाप पड़ी
बता पावनी कौन देश की पवन से तौको डांट पड़ी
सर्द का आलम अजब
धूप न निकली
न ही सूरज चढ़ा
पर देखो वो हुई फिर
भी उठ खड़ी
अगले ही दिन जब
मैं चादर में थी दबी - दबी
पर वो सामने थी खड़ी
आंखे दबाती, ताली बजाती
हंसती हुई बस बोल उठी पावनी,
मेरी तो नींद खुली जब,
सुबह हुई उठ जाओ बोली लाडली,
सर्द का आलम अजब
देख घना कोहरा दिल मोरा बन बैठा बौरा,
पर देखो वह करने दादू संग शेर चली,
सर्द का आलम अजब,
मुझे सर्द लगे जैसे बर्फ पड़ी,
वो तो जैसे बसंत में खड़ी॥