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Uma Sailar

Others

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Uma Sailar

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बुढ़ापा

बुढ़ापा

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एक वक्त मेरा भी था

मैं भी जब खुद्दार था

खुद में,

खुद पर नाज़ मुझे था

आलम – ए जवानी जो था

पर आज बुढ़ापा सर चढ़ आया

रेखाएं ये सिकुड़ी जाए

न बेटा – बेटी का साथ

फिरता गिरता – पड़ता बाप

नया ज़माना नए रिवाज़

सब करते मतलब से बात

नहीं खुलते मदद– ए किवाड़

सब लगता है मुझे कबाड़,

ज्यों – ज्यों उमर ये,

ढलती जाए

बदला जाए सबका सब रे

भूख मिटाने के खातिर

खैरात की खानी जारी है

जो कल ऑफिस का मालिक था

आज रास्ते का भिखारी है ।।



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