STORYMIRROR

Uma Sailar

Abstract Classics Fantasy

4  

Uma Sailar

Abstract Classics Fantasy

का कारज

का कारज

1 min
385

​का कारज मोहे रिझात

क्यों बादल धरती पे आत

क्यों ठंडी तू पवन लात 

क्यों बदरी तू जोर आत 

उपवन काहे तू खिलात


चकोर काहे रोए गात

डोलन को मनुज रातबिरात

बौरात बेहरात और अकुलात


तेरी कारी कारी बदरी देख

जियरा हमार मोहित हेय जात

उह बात इहई फिर याद आत

काहे हाथों में तू ना समात


लागे है के जैसे तू मोको

समुझावत उमा मान बात

काहे को तू मोहे सतात

अंधियारे आत जात


काहे ध्वनि फिर चेन खात

काहे धीर ना बंधे बंधात

काहे जियरा फिर लहे ग्रास


इह घर्षण का खातिर होए जात

देर दूर हम सोचे काल

काहे इह कलम ना हाथ आत

तुमसे कहने को लाख बात


बतावें केसन बूझे ना बुझात

लेके हमार इह दोई हाथ

खुदको उमा धीरज बंधात

आइयो कबहुं तुम

फिर करन घात


लखियों रागी को ये प्यारो साथ

रहे देत है हमरी बात

और बाकी दिन में कहें बात

लेत विदाई अभी हम जात


मिलहिं खातिर हमका से

तुम्हई को परे आन तात।

उमा सेलर : उमा लिखती है


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract