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Padma Verma

Abstract

4  

Padma Verma

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" स्पर्श "

" स्पर्श "

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   झमाझम बारिश की आवाज़

   मिलते ही दौड़ आई,

   बालकनी में, 

   कपड़े भूलकर, पहले,


   गमलों को हटाया,

   पत्तों को सहलाया, पोंछा,

   फूलों की पंखुड़ियों को

   पुचकारा ...


    चोट तो नहीं लगी तुम्हें,

    बारिश की थपेड़ों से,

    बड़े - बड़े पेड़ गिर रहे हैं,

    तो इन पौधों का क्या ? 


    बोलते तो हैं ये, पर उन्हें,

    समझने के लिए ...

    इंसान में भावनाएं भी,

    तो होनी चाहिए।


    पैसे बटोरने के चक्कर में,

    फूलों के कोमल स्पर्श को 

    महसूस करने के लिए वक्त 

    ही कहाॅं है?


     सुन्दर -सुन्दर फूलों को,

     स्पर्श करने से मन प्रफुल्लित

     हो उठता है ..

     उसी प्रकार,...

   

    हवा के थपेड़ों के स्पर्श से,

    जूझते फूलों को देख                          

 क्या इंसान की भावनाऍं 

    द्रवित नहीं होती ?


    इतना कठोर, 

    कैसे हो गया इंसान ?

    अपने सुख - सुविधाओं का 

    इतना ध्यान और अनबोलते

    प्राणी का स्पर्श का कुछ भी नहीं ? 

    

    जबकि,

    हमारी खुशियों के दाता,

    ये अनबोलते प्राणी हैं ।

    इनकी स्पर्श को समझना

    इतना कठिन हो गया इंसान ? 


    कैसे ? 

    इतना कठोर कैसे?

    बताओ ....

    इंसान ....?


  


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