STORYMIRROR

Rekha Rana

Drama

3  

Rekha Rana

Drama

सपना

सपना

1 min
216

देख कर निजकर मन बहुत घबराया ,

उज्ज्वल सी हथेलियाँ हो गई काली स्याह।

देवदूत से पूछा मैं ने ये कैसी है माया,

ये तेरे कर्मों का रंग देवदूत फरमाया।

मल-मल के साबुन से धोया रगड़-हार बैठी,

जाने कितने जतन किये पर कालिख न हटी ।

गुस्से में हाथ को दीवार पे मारा, तो आँख गई थी खुल ,

अरे ... ये तो सपना था देवदूत था गुल ।

फटाफट हाथों को देखा वो थे निर्मल-कोमल,

पर सपने की बात आँखों से नहीं हो रही थी ओझल ।

फिर कभी अपने हाथ न डरायें कुछ ऐसा करना होगा,

अपना ये जीवन मुझको मानवता को समर्पित करना होगा ।




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama