सफर 2020
सफर 2020
ट्वेंटी-ट्वेंटी का त्रासद "सफर"
किया सबको बहुत ही सफर,
जैसे सागर मंथन से फैला था जहर
करोना महामारी आई बनकर कहर,
मानव का रोम-रोम आज भी रहा सिहर
जाने कब? कहां? होगी इसकी ठहर,
बर्बाद हो गए है शहर दर शहर
मानो प्रलय लाई हो सुनामी लहर,
राजा कौन प्रजा इससे रही बेखबर
आक्रोश से इसके न पाया कोई उबर,
याद रखेगा इतिहास ये युग युगांतर
कैद हुए कैसे हमअपने ही घर के अंदर,
बना शिकार बस प्रगतिशील मनुवर
निर्द्वंद हुआ आज अखिल चराचर,
विज्ञान सोपान भी सब रहे बिखर
वैक्सीन की खातिर भटक रहे दर-दर,
है ईश्वर
से यही प्रार्थना हर घड़ी प्रहर
फिर ना आए ये तपिश भरी दोपहर,
यद्यपि यहाँ कुछ भी नहीं अजर अमर
होगी ये बीमारी भी निश्चय ही नश्वर,
मगर सीख हमें यह जाएगी देकर
रहे प्रकृति के प्रति नतमस्तक होकर,
हांँ इस वर्ष भी कुछ तो हुआ है बेहतर
पुर विरोध में भी हटा तीन सौ सत्तर,
थी अयोध्या वर्षो से उपेक्षित जर-जर
मंदिर के निर्माण से हुआ रोशन घर-घर,
तिरंगा लाल चौक में रहा है फहर
और आतंकी गतिविधियां रहीं बिफर,
दुश्मन को किया हमने बद से बदतर
हो गए मंसूबे उनके सारे तितर-बितर,
कमोवेश इस साल का रहा यही असर
मिल हमने पार किया 2020 का "सफर" ।