सोने जा रहे हो न तुम
सोने जा रहे हो न तुम
सुनो, सुनो जरा
हाँ, तुम्हीं से बात कर रही हूँ
सोने जा रहे हो न तुम ?
पर क्या तुम्हें नींद आ पायेगी ?
चलो मान लिया आ जायेगी
पर क्या तुम्हें उनका चेहरा नजर नहीं आएगा
उनकी मासूमियत पर तुम्हारा दिल नहीं आएगा
आँसू जो कि सूख चुके हैं
जिसमें धूल जम चुकी है।
पर क्या उन्हें साफ करने का मन नहीं चाहेगा
चलो मान लिया तुम्हें चेहरा याद नहीं आएगा
पर क्या तुम्हें चीखें नहींं सुनाई देगी
उन मासूमों के मुँह से निकली हुई
तुम्हारे कानों में गूँजती हुई
आखिर तुम्हें चैन की नींद कैसे आ जाती है ?
उनकी तो हर रात खौफ के साये में गुजरती है
आँखों से उनके अब आँसू नहींं
लहू की अविरल धारा बहती है
जिन आँखों में भविष्य के संजीले सपने होने थे
उनमें अब अपनों के खोने का भार नजर आता है।
जिन हाथों में खिलौने होने चाहिए थे
उनमें अब अपनों का कफ़न नजर आता है
जिनके चारों तरफ खुला वातावरण होना चाहिए था
उन्हें अब जमींदोज बंकरों में साँसे लेनी पड़ती है।
आखिर क्या गुनाह था उनका
यही की उन्होंने खुशहाल जिंदगी की उम्मीद की थी
अपने परिवार के साथ भविष्य की कामना की थी
बस तुम्हारे असुरक्षा के डर की वजह से
तुमने परमाणु हथियार की बारिश की थी।
आखिर क्या गुनाह था हमारा
जिसकी सजा हमें जिंदगी भर के लिए मिली
अपनों को खो कर
खुद को यूँ तोड़ कर।