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सोचो तो जरा

सोचो तो जरा

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सोचो तो जरा क्यों ये ख़ुमार है

सोचो तो जरा क्यों बेकरार है


गुम हो गए यूँ पुरानी यादों में

करने लगे आदतों की तकरार है


मिली थी ख़बर गुमशुदगी की

ढूँढे अपना कोई जैसे तलबगार है


यादें जिंदगी से जुदा नहीं होती

तड़पाती दिल को ये बार-बार है


बदल जाते है हालात ज़िन्दगी में

जब अपनों के ही होते वार है


सोचो तो जरा क्या हासिल किया

किश्तों में दर्द मिला बेशुमार है


मायूस होकर क्यों जीए हर बार

मिलती जब ज़िन्दगी एक बार है।।


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