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Vivek Madhukar

Romance

3  

Vivek Madhukar

Romance

संयोग

संयोग

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एक दोस्त पाया मैंने

या शायद उसने पाया मुझे

या शायद वो था नसीब,

भाग्य,

परिस्थिति

या शायद विधाता द्वारा

पूर्वनिर्धारित।


कारण कुछ भी रहा हो

नाम कुछ भी दिया जा सकता है


क्या हम

उन नक्षत्रों की तरह थे

जो

थे तो अपनी-अपनी कक्षाओं में

पर

घूम रहे थे अपनी धुरी पे

इसी हेतु

चिरंतन काल से

उपयुक्त समय की प्रतीक्षा में

जब

काटना था रास्ता उन्हें एक-दूसरे का?

नहीं जान पाएंगे

हम कभी भी


क्या फर्क पड़ता है !


भीतर से कह रहा था कोई

पनपेगी,

फूलेगी-फलेगी

यह दोस्ती

और प्रगाढ़ होती जाएगी। 


कितना कुछ अच्छा तो है तुझमे -

तेरा संयम

आँखों में झाँकती शरारत

तेरा सौम्य चेहरा

तेरे वजूद की गर्माहट

निश्छल चाँदनी-सी हँसी

मेरे दिख पड़ने भर से

आनन् पे छलकती ख़ुशी

तुम दोस्त हो

या

कुछ और

पता नहीं!


पर

कुछ चीज़ें है,

कुछ चिन्ह

कुछ इशारे है,

कुछ धड़कनें

जो

इंगित कर रही है,

इस ओर


आस बँधाये रखना,

ऐ दिल!

गिनते रहना पल

और घड़ियाँ

उनसे दोबारा

मुलाक़ात तक। 


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