संत
संत
संतों की ए बात निराली
संतो की समझ में आती है
मूर्ख लोग को देख हमारी
आंख ज़रा भर आती है।
माने खुद को बड़े अपने
देखा करते सपने बड़े
माता पिता को भूल भूला के
गढ़ते सुख सारे अपने।
अरे जन्म लिया है जिससे तुमने
जग जननी जगदम्बा कहाय
छोड़ तू उनकी सेवा को
दुष्ट सेवा कर संत कहाय।
आंगन माता पिता तेरे तड़पे
एक एक पाई को तरसाय
गरीबों की रूदन की अमानत
फिर भला उन्हें कैसे सुहाय।
पिताश्री कहा करते हैं
ज्ञानी बनो हितकारी बनो
सत्य राह को कभी ना छोड़ो
संत बनो यादगार बनो।
कहे अमित वैसे लोगों से
करो सेवा सही योगों से
ख़ुश रहोगे सुखी रहोगे
चलो राह सच्ची मेहनत से।
