संस्कृति का अंश
संस्कृति का अंश
तुम भूगोल के नक्शें से
मैं इतिहास के पन्नों सी
तुम आकाश अनंत से
मैं धरा जीवंत सी
तुम सागर उस छोर के
मैं बहती गंगा अविरल सी
तुम पाश्चात्य की जुबानी
मैं भारतीय परिधान की निशानी
शायद बिछड़ना ही अंत था
पर संस्कृति का थोड़ा अंश था
मिलन हुआ
पृथक विचारधाराओं का
सेतु निर्माण हुआ प्रेम का
संगम सा
जहां मिले हम, तुम
और हमारी पुरातन संस्कृति
इक रीति निभाने
आशियां बनाने की
तुम्हारे ख़्वाहिशों के शहर को
अपने ख़्वाबों में सजाने की
खूबसूरत सफ़र पर
हमसफ़र संग
बसाने की !