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Sheel Nigam

Tragedy Classics

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Sheel Nigam

Tragedy Classics

स्नेह का बादल

स्नेह का बादल

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जीवन-संध्या में क्यों ?

तू बरस रहा बन स्नेह का बादल

भीग रहा अधूरापन झलकाता

मेरे जीवन का आँचल। 


मैं भिक्षुणी स्नेहांजलि लिए

दिन भर भटकती रही।

पा सकी न प्रेम-भिक्षा, 

झोली मेरी खाली ही रही।


गेरुएपन की आड़ में

रक्त हृदय का छिपाती रही 

थोड़ा-कुछ पाने की आस में,

सर्वस्व लुटाती रही।


साधना-अर्चना की हृदय में

जगी ऐसी लगन। 

एक साध्वी के रूप में

अब मैं बन गयी जोगन।


साहस नहीं है पा सकूँ, 

तुझे भर कर नयन। 

काल-रात्रि की ओर चले,

थके -हारे मेरे चरण।


जीवन-संध्या में क्यों ?

तू बरस रहा बन स्नेह का बादल

भीग रहा अधूरापन झलकाता

मेरे जीवन का आँचल।


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