संदूक
संदूक
जो तूने पहली बार कबूल किया था
वो गुलाब भी संदूक में छुपा रखा है
यादों का सारा सिलसिला अब भी
इस संदूक में संभाल कर रखा है
जब पहली बार बांहों में लिया था
तो तेरे झुमके मेरे साथ रह गए थे
उन्हें देखता हूं तो याद आता है कि
वो सारे जज्बात कुछ नए थे
वो गजरा सूखा और मुरझाया है
पर इस संदूक को महका जाता है
और तू पूछती है मुझसे कि क्या
आज भी मुझे तेरा ख्याल आता है!
अरे, तेरा दिया हुआ सारा खत
आज भी इस संदूक में पड़ा हैं
कैसे भुलाऊं कि दिल आज भी
ख्वाब देखने की जिद पर अड़ा है
फर्क इतना है तुझे कोई और मिल गया
जो शायद मेरी याद आने देता नहीं है
तुझे भुलाना तो चाहता हूं पर
ये संदूक है जो भुलाने देता नहीं हैं