संभल के
संभल के
जब आप कालेज में होते,
तो छात्र भी,
भिन्न भिन्न धाराओं के होते,
उनमें कुछ शरीफ सीधे साधे लगते,
कुछ शैतान दिखते,
कुछ बीच के होते,
कुछ बहुत पढ़ाकू होते,
कुछ खिलाड़ी भी होते,
और कुछ दंगा फसाद वाले भी मिलते।
वो प्रोफेसर नये,
आए थे कालेज में,
बहुत उत्साह था,
आदर्शों से परिपूर्ण थे,
सब छात्र छात्राओं से,
दोस्तों की तरह रहते थे,
अगर हो जाए,
कोई ऊंच नीच,
दिल पर नहीं लेते थे।
लैक्चर में,
लड़के लड़कियां दोनों होते थे,
हंसी मजाक चलता था,
एक रोमांटिक कविता,
पढ़ा रहे थे,
कुछ वर्सीज,
उनमें दिल फेंक दें,
एक छात्र था रसिक,
अच्छा खासा रौब वाला,
छात्र छात्राओं में भी था प्रचलित,
उसने एक लड़की को,
बेढ़ंगा मैसेज किया,
वो तिलमिलाई,
और उठकर,
प्रोफेसर साहब के पास आई,
शिकायत दर्ज कराई,
प्रोफेसर साहब को आ गया गुस्सा,
ये थी अनुशासनहीनता,
झट से,
उस लड़के को,
बाहर का रास्ता दिखाया,
लैक्चर में हो गया,
हल्ला गुल्ला,
किसी तरह से,
बात संभाली,
प्रिंसीपल तक जा पहुंची,
उसने प्रोफेसर साहब को बुलाया,
और थोड़ा व्यवाहिरक रहने को कहलवाया,
साथ में,
उस लड़के सारा इतिहास सुनाया,
ये लड़का है,
निहायत बिगड़ा हुआ,
कर चुका है मर्डर,
इससे जरा निपटीय संभल कर।
प्रोफेसर साहब ने,
प्रिंसीपल साहब से,
माफी मांगी,
और लड़के से,
मिलने की ठानी।
आखिर एक सीनियर प्रोफेसर,
पड़ा बीच में,
और करवा दिया समझौता।
फिर प्रोफ़ेसर साहब संभले,
और अपने दायरे में रहने लगे,
उस लड़के से,
बचकर चलने लगे।