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ASWINI DASH

Drama Inspirational

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ASWINI DASH

Drama Inspirational

समुंदर की ओर

समुंदर की ओर

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समाज से ही नदी,

नदियाँ, समुन्दर की ओर चलते रास्ते में

एक पथिक समुन्दर और नदियाँ को

इशारों से बुला रहा है,


कोई उसकी पुकार न सुने,

अकेला वह गुमसुम बीच सड़क में !


समाज की राह बहुत लम्बी, सब पागल,

यन्त्र जैसे धावित, अनिश्चता की ओर !

स्वप्न ध्वस्त, अलसायी आँखों में स्मृतियाँ,


दु:ख सब सिन्धु-साम्राज्य ,

क्या करेगा पथिक ?


खोजने वाला हाथ बहुत छोटा,

गगन को छूने की सामर्थ्य मन में ही तो है,

दिग्वलय माप नहीं पाती उंगलियाँ

हर सूरत में होता है क्या ?


एक-एक दर्पण,

अस्थि-माँस-चमड़े का,


सूखी हुई चम

क !

है क्या रुधिर में आवेग की वाणी ?

कौन क्या खोज रहा है ?

सब छुपा है क्या मस्तिष्क के खेलों में !


संभवत: हम पराजित होंगे,

टूट जायेंगे हम शीशों की चमक खोजते ही,

सो जायेंगे आहट में।


नहीं ! पथिक कभी विश्राम लेता नहीं !

चलना है कर्त्तव्य उसका हर क्षण,

मिले या न मिले, अन्वेषण ही जिन्दगी है,

ऐसे व्यतीत होना है।


तमाम राहों की क्लान्ति,

ताड़ने की मुस्कान में !


चलो ! हम चुपचाप सहेंगे यंत्रणा,

नदियाँ, समुंदर को छूने की ख़ुशी में,

उसकी ठंडी हवा छुए हमारे दिल को,

शीशा टूटने की आवाज जैसे सुन न सके

कभी खयालों में !


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