कभी कभी मन
कभी कभी मन
मैं तो चलता ही हूँ,
क्या पता कहाँ गिर न जाऊँ,
कभी कभी मन
बेचैन हो जाता है क्यों!
किसी की तलाश में जिंदगी बिता नहीं,
जो भी नहीं माँगा मिला है,
फिर इतना परेशान क्यों !
दिल आज भी धड़क रहा है
उस दिन की तरह,
कोई प्यार से चाही थी मुझे,
डर गया था मैं,
वह भी चल गई मुस्कान ले के,
फिर आई नहीं।
घबराता क्यों ए मन कभी कभी,
जीना तो चाहता हूँ मैं,
हर दर्द और ख़ुशी दिल में लेकर,
नयनों में आशाओं की पक्षी है फिर भी।