मैंने आवाज़ नहीं दी तुम्हें
मैंने आवाज़ नहीं दी तुम्हें
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मैंने आवाज़ नहीं दी तुम्हें
जब तुमने मुड़ना चाहा पीछे।
ग़लती किसी की भी हो,
मैं मजबूर नहीं था
तुम्हारी ज़िद मानने।
रोकना नहीं चाहा तुम्हें,
आगे बढ़ चुकी थी तुम
मेरे ख़यालों और सपनों से।
मैंने तुम से प्यार क्या
चाहा तो नहीं,
तुम्हारे दूर होने के दर्द से
जीने की आदत को झेल सकूँ,
इसलिए रोका नहीं।