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लम्हा लम्हा जीते हैं

लम्हा लम्हा जीते हैं

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चौराहों पर पड़े हुए एक ही

पथ पकड़ना है हमे,

इसका नाम है तो जिंदगी।


लम्हा लम्हा जीते हैं

इस मूड पर ही,

कितनी व्याकुलपन को

पिछड़ते हुए

नई मंज़िल की ओर।


कुछ फूल फिंगे,

कुछ कांटे भी बिछा दिए,

फिर भी टला नहीं मन,

घूम घूम कर यह

मन बिखर गया,

फिर भी चलता गया तन

हर दर्द को सह कर

लहू की नदी पर नाव बनते।


स्मृतियाँ खिल उठी,

सपने बिखरते गए

लम्हा लम्हा चलते चला यूँ ही ।



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