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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

"खुद की कर तू कदर"

"खुद की कर तू कदर"

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जो भी न करे यहां पर, तेरी कोई कदर

उसे, यहां पर तू भी कर दे, हृदय से बेघर

अकेला रह, पर कर्म कर तू भी हंसकर

मोती नही लूटा, यहां व्यर्थ के लोगो पर

तेरे अक्षु, मोती से कम मत मान तू नर

बहा, वहीं पर, जो मानते, तुझको, कुंअर

व्यर्थ का बोझ मत रख, अपने सिर पर

जो लोग, रखते तुझ पर मित्र बुरी नजर

उनके लिए बना, अपने दिल को पत्थर

ये दुनिया है, सबके सब बेदर्द यहां पर

तोड़ देते आईनों को फूल ही अक्सर

तोड़ते दिल वही, जिन्हें मानते भीतर

प्यासे रखते है, वही पानी मे रखकर

जिन पर यकीन होता, हमें दरिया भर

सब, दिलों पर डाल रखा, ईर्ष्या ने असर

इस डाह ने जला डाला, अपना ही घर

छोड़ दे, साखी उन्हें जो सामने रहे, मधुर

तेरे पीछे भीतर रखते है, तेरे प्रति जहर

व्यर्थ की भीड़ से अच्छा, अकेला रह नर

कायरों को छोड़ वीरों की पकड़ डगर

जिसने अपनाया, सत्य, ईमानदारी हुनर

आजकल वह अकेला ही आता, नजर

शेर जैसे चाहे अकेले ही कर गुजर-बसर

गीदड़ो जैसे न जी जिंदगी कभी डर-डर

वही चमकता है, बनकर कोहिनूर पत्थर

जिसने मचाया, कोयलों की खदानों में गदर

जो भी न करे यहां पर साखी तेरी कदर

बता दे, उन्हें तेरे में, क्या से क्या है, हुनर

तू झुक सकता है, दोस्त एकदिन, अम्बर

चापलूसों से दूर रह, हृदय से कर्म कर

वही सच मे बना पाया है, सपनों का शहर

जिसने परिश्रम किया, बेक़दरों से दूर रहकर

अपनी कदर साखी, एकबार, तू खुद कर,

फिर देख कैसे बदलती, जमाने की नजर



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