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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

"शादी पवित्र बंधन"

"शादी पवित्र बंधन"

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शादी तो होता है, बहुत ही पवित्र बंधन

जो निभाता, वो जीवन बनता है, वृंदावन

वह व्यक्ति करता है, शादी के बाद, क्रंदन

जिसका न लगता है, अपनी पत्नी में मन

जो सत्यता से निभाये, सात फेरों के वचन

फिर क्यों भटका फिरेगा, उसका यह मन

शादी तो होता है, साखी एक पवित्र हवन

निःस्वार्थ प्रेम की डालता है, सामग्री हवन

जीवन मे नित ही उठेगी, फिर अच्छी पवन

हर्षोल्लास से ही बीतेगा, तुम्हारा यह जीवन

सिर्फ़ उनके ही अधिकारों का होता है, हनन

जिसका पराई स्त्री ओर होता है, मन गमन

शादीशुदा जीवन है, एक पवित्र वृक्ष चंदन

जितना कटता है, उतना महकता है, चंदन

आज के दौर में टूटा है, विश्वास का चरण

न तो क्यों आता तलाक रूपी दुष्ट, रावण

आधुनिकता होड़ से व्यथित, साखी मन

रीति रिवाजों का टूटा गया है, पूरा बदन

रात को पार्टियों में जाना, देरी से आना

ऊपर से स्व पत्नियों को गलत ठहराना

यह उचित न होता है, गृहस्थ का जीवन

दो-तीन बार पत्नी को फोन करे, जो जन

उसकी कुशल क्षेम जो पूंछ लेता, कुंदन

वो जीवन हंस उठे, जैसे जीवन बचपन

पत्नी तो है, गृहस्थ जीवन का आधा तन

पत्नी आदर दिए बिना, न खिलता सुमन

गृहस्थी में तपस्वी तेज से ज्यादा है, तपन

शीशे से ज्यादा नाजुक है, गृहस्थ जीवन

जो स्व नारी को बराबर का मानता है, जन

उस जीवन मे नही आता है, अन्धकारपन

उस आदमी का हो नही सकता है, पतन

जो औरत को गृह लक्ष्मी मान करे, वंदन

दुःखद बन जाता है, वह शादीशुदा जीवन 

जिसमे पति-पत्नी में चलती रहती, अनबन

पर जिस गृहस्थी में क्रोध का होता है, शमन

जो क्रोध करने पर दूजा बनता, शीतल वन

उसका शादीशुदा जीवन बनता है, उपवन

वहां खिलते, खुशियों के रंग-बिरंगे सुमन। 



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