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कीर्ति वर्मा

Romance

4  

कीर्ति वर्मा

Romance

सम्मोहन

सम्मोहन

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तुम पूनम के इंदु से

मैं तो एक चकोर हूं।


तुम स्वाति की बूंद से

मै चातक सी प्यासी हूं।


तुम संदल के तरु प्रिय

मैं अमरलता सी दासी हूं।  


जाने क्या सम्मोहन है तुझमे?

मैं खिंची डोर सी आती हूँ।


अब और न देर लगा कान्हा

मैं तेरे चरणों की दासी हूं।

         


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