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कीर्ति वर्मा

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कीर्ति वर्मा

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भूख

भूख

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सभी महिला मजदूरों को सादर समर्पित


माथे तगाड़ी

फटी साड़ी,

फावड़े से भरती गिट्टी

कभी रेत कभी मिट्टी,

गेंती और सब्बल सम्हाले

खोदती सड़क किनारे,

भरने पेट का कुआँ

ठंडे चूल्हे का धुआँ,

हँड़िया रीति पड़ीं

आँसुओं से है भरी!!


धोतियों के झूला डारे

झूलता मुन्ना किनारे,

भूखे लाल का रुदन!!

भटकता है उसका मन,

लाल आँचल से लगा ले

या फ़िर तगाड़ी सम्हाले,

ठेकेदार भी बुलाये

भूख अब, किसकी मिटाये !!

रोज की उसकी कहानी

मजदूर हो या नौकरानी।

       


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