दीप देहरी का
दीप देहरी का
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जन्मते ही बेटा
बढ़ जाती है "देहरी"
सवा हाथ !!
सुना था ,दादी नानी से
होती है लक्ष्मण रेखा
बेटियों के लिए !!
जो पार करती हैं
यौवन की दहलीज!
तभी तो बो जाती हैं धान
पिता के आंगन में
विदाई के वक्त!!
ताकि धन-धान्य से
परिपूर्ण रहे मायका !!
जाने के बाद भी!!
गृहलक्ष्मी बन
पदार्पण करती हैं
ससुराल में!
गिराती है धान
प्रवेश से पहले,
और लगा देती मोहर
महावर रचे पांव की!!
एक भरोसा
कभी न लांघने की
वह देहरी!!
जो होती है,
"लक्ष्मणरेखा"
सच ही तो है !!
बचाती है वह रावणों से।
तभी तो सजती है रंगोली
और जलाए जाते हैं
दीप देहरी पर।