समां कैसे है बुलंद किया
समां कैसे है बुलंद किया
खामोश जुबां जो तेरी मुझसे कुछ कह ना सकी
वो काम तेरी नज़रों ने आज क्या खूब किया
एक पैगाम था तेरे मन में ना जाने कब से दबा
कैसे तूने उसको अपने अंजाम पर पहुंचा दिया
तुझको लगता था कि मैंने खुद से दूर कर
मैंने तुझको यूँ ही अपने से अजनबी कर लिया
बहुत हसरत थी तुझको भी इस मुलाकात की
मुकद्दर ने आज वो समां कैसे है बुलंद किया
तेरे नूर पर तो हो जाये हजारों चाँद फ़िदा
इसलिये था मैंने तुझको अपना दिल दिया
सोच कर डर लगता है की तुम हो बेपरवाह
इसलिये खुद को तुझसे था मैंने अलग किया
थामा जो तुमने अपने हाथों में हाथ अब मेरा
लगता है फिर से मेरा भाग्य तूने है रोशन किया
आज फिर शायद मेहरबान हुआ मेरा रब्बा
जो मांगा था उनसे वो समां कैसे है बुलंद किया
आज करले एक - दूसरे से वादा जरा
ना होंगे अब कभी यूँ ही बिन बात खफा
मुझमें ही बसता रहे तेरा दिल सदा
तेरी आँखों में है मेरा संसार बसा
ना छूटने दूंगा अब कभी साथ तेरा
आज मिटा दे जो दुरी थी हमारे दरमियाँ
हो जाने दो सारे सपने साकार ओ रब्बा
बताना चाहता हूँ जो समां कैसे है तूने बुलंद किया।

