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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

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Ratna Kaul Bhardwaj

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समाज एक कठपुतली

समाज एक कठपुतली

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यह समाज बन चुका है एक कठपुतली 

और अब सत्ता है बाज़ीगर 

सब कुछ चलता है यहाँ बस एक 

ईमानदारी को छोड़ कर 


कुर्बानियां देकर सदियों की गुलामी 

छोड़ आये थे जो हम पीछे 

विकास ऊंचाइयां छूने लगा पर 

मानसिक पतन भी आया पीछे पीछे 


जनसँख्या,महंगाई,भुखमरी, बीमारी 

दानव की भांति फ़ैल रही हैँ 

भ्रष्ट राजनीती व् राजनीतिज्ञ नीतियां 

बेचारी अवाम झेल रही है 


निरक्षिता,बेरोज़गारी,सांप्रदायिकता,आतंकवाद 

हैँ समाज की यह समस्याएं 

सत्ता में बैठे हुए कितने ही बाज़ीगर 

नहीं हैँ बेखबर वे ,पर अलग हैँ उनकी इच्छाएँ 


हर नुक्कड़ पर नशा बिक रहा है 

और हो रहा है देह का व्यापार

बढ़ती महत्वकांक्षाएँ स्वरुप बदलने लगी हैँ 

बदल रहा है सामाजिक विचार व् व्यव्हार 


वे बाज़ीगर सत्ता के अब 

दलाल खुद ही बन चुके हैं

आम आदमी का हो रहा है शोषण 

हलाल हो रही उसकी इच्छाएं हैँ 


भाषा, जाति, प्रान्त,सांम्प्रदायिकता 

विभिन्न स्वरुप हैँ कठपुतलियों के 

इन धागों की डोर संभाली हैँ  

मन के काले आज के नेताओं ने 


लुट रही है धरती , सिसकते हैं लोग 

जनता मर रही हैं ,किसी को परवाह नहीं 

बस यूं ही जिए जा रही है बिन मकसद 

यह समाज रुपी कठपुतली।


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