सियासत के रंग अनेक
सियासत के रंग अनेक
सियासत में ना तो दोस्ती की उम्र लंबी
ना ही दुश्मनी की रेखा होती है बहुत लंबी।
मतलब है जिससे, वही बनता है हमसफर
मतलब निकलते ही जुदा हो जाती है डगर।
जो शख्स एक-एक पल लगता है अपना
गुजरे हुए पल में वह हो जाता है बेगाना।
सियासत चीज ही ऐसी अनोखी है भाई
कभी बहार तो कभी दे देती है तन्हाई।