सियासत के खेल
सियासत के खेल
शतरंज सा खेल खेलते जिंदगी में कुछ का काम प्यादे सा बने रहना
कोई करे अहंकार घोड़े सा दौड़ने का चाहता
मैदान में वो अकेला बने रहना ढाई क़दमों की दूरी तय कर
तुम क्या चाहते हो वज़ीर को क़ाबू रखना
रानी ने भी चल दी अपनी चाल बना जाल
सियासत के खेल में कर गई वो कई कमाल
अजीब सी महक क्यों तुझको आने लगी है
कर हमको अपने से दूर तू मुस्कराने लगी है
क्या मेरी आहटें तुझको नहीं सुनाई देती
देकर दर्द मुझे शतरंज पर बिसात जमाने लगी हो
कह देते तुम मुझको जरा एक बार नहीं सुहाते मुझको तुम चुभते हो
यार प्यादा सा घायल हो मैं हो जाता कब का बाहर
सियासत के खेल में मैं कबूल कर लेता अपनी हार
अब समझ में आया मुझको क्यों चलता ऊंट टेढ़ी चाल
मतलब नहीं उसको किसी से वो ना करता कभी कोई बवाल
हाथी मस्त हो चलता सीधी चाल करता वो अपने रास्ते में बड़ा धमाल
ना रखे किसी से कोई वास्ता सियासत के खेल में उसका ये कमाल।
