सिसकियाँ
सिसकियाँ
लाख लगा दो पहरे
तुम ना रोक सकोगे,
प्यार के इन पंक्षियों को,
वो ना जाने जाति-पाति का,
भेद, वो तो बस जाने प्यार,
की ही भाषा
दादा, बाबा, भईया, चाचाजी
ताऊजी, तुम सब समाज के,
ठेकेदारों तुम ने लगा दिया है पहरा,
अपनी ही लाडो को ज़ंजीरों,
तालों में कर लिया है क़ैद
उसकी सिसकती आहें
तड़पाएगी तुम को किसी,
पल ना पाओगे चैन
अपनी झूठी शान की,
ख़ातिर तुमने अपनी ही,
लाडो को तड़पा-तड़पा
कर दिया ख़त्म....!
