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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy

सिर्फ तुम्हारे लिये

सिर्फ तुम्हारे लिये

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आज के भौतिकवादी युग में बुजुर्गों की कहावत सटीक बैठती है " दादा बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपय्या इस विषय में आपके क्या विचार हैं । 40% को छोड़कर यही विचारधारा पनप रही है ।

अर्थ-धन, पैसा, रुपया। 


पैमाना बदल रहा अब सिर्फ तुम्हारे लिए का। 

अर्थ का अर्थ हुआ जीवन में तुम्हारे लिए का ।


माँ की ममता, पिता का प्यार अवमूल्यन हुआ ।

पत्नी ने अर्थ हेतु सुगृहणी पद अवकाश लिया ।


बच्चों ने भी जीवन अर्थ खोज अनर्थ कर लिये ।

भोगवादी संस्कृति में तुम्हारे लिए सिर्फ हर्फ हुए। 


भौतिक चमक में संस्कार तोड़ बेटी भाग रहीं ।

अर्थ ललक में छोड़ स्वजन, गैरों को जोड़ रहीं ।


मृगमरीचिका छलना से ललना कैसे सांसें खो रहीं ।

तुम्हारे लिए शब्द सिर्फ बेमानी शब्दजाल हो रहे ।


तुम्हारे लिये का ममत्व भाव तिरोहित हो चला ।

बेटे-बेटी के लिए अर्थ में गैरमुल्क मन भा गया ।

       


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