सिर्फ तुम्हारे लिये
सिर्फ तुम्हारे लिये
आज के भौतिकवादी युग में बुजुर्गों की कहावत सटीक बैठती है " दादा बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपय्या इस विषय में आपके क्या विचार हैं । 40% को छोड़कर यही विचारधारा पनप रही है ।
अर्थ-धन, पैसा, रुपया।
पैमाना बदल रहा अब सिर्फ तुम्हारे लिए का।
अर्थ का अर्थ हुआ जीवन में तुम्हारे लिए का ।
माँ की ममता, पिता का प्यार अवमूल्यन हुआ ।
पत्नी ने अर्थ हेतु सुगृहणी पद अवकाश लिया ।
बच्चों ने भी जीवन अर्थ खोज अनर्थ कर लिये ।
भोगवादी संस्कृति में तुम्हारे लिए सिर्फ हर्फ हुए।
भौतिक चमक में संस्कार तोड़ बेटी भाग रहीं ।
अर्थ ललक में छोड़ स्वजन, गैरों को जोड़ रहीं ।
मृगमरीचिका छलना से ललना कैसे सांसें खो रहीं ।
तुम्हारे लिए शब्द सिर्फ बेमानी शब्दजाल हो रहे ।
तुम्हारे लिये का ममत्व भाव तिरोहित हो चला ।
बेटे-बेटी के लिए अर्थ में गैरमुल्क मन भा गया ।
