सिर्फ एक तुम !
सिर्फ एक तुम !
मेरे कानों में बजता
धरती का कोई राग
ऐसा नहीं जिसमें तुम
बज ना रही हो ,
कोई ऐसी नदी नहीं
जो तुमसे होकर नहीं
गुजरती हो ,
बारिश की कोई ऐसी
बूँद नहीं जिसमे तुम
नहीं होती हो ,
धरती की आखरी छोर
से बहकर जो हवा मुझे
छूने को आती हो ,
वो हवा भी तो तुम्हारा
ही पैगाम लेकर मुझ
तक आती है ,
फूल कहीं भी खिले
प्यार चाहे कहीं भी
प्रकट हो ,
इन सब में मैं एक
सिर्फ तुम्हें ही तो
पाता हूँ !