STORYMIRROR

Deepika Guddi

Romance

3  

Deepika Guddi

Romance

सिंदूरी शाम

सिंदूरी शाम

1 min
369

ज़िंदगी की भागा दौड़ी जैसे

दिन के चिलचिलाती धूप हो

उस तपिश के बाद 

जैसे -जैसे सूरज दूर जाता है 

वैसे ही तुम और क़रीब आते हो मेरे 

दिन भर के ऊहापोह से थक कर 

घर लौटने की और तुमसे मिलने की 

जल्दबाजी में मन विचलित होने लगता है 


वो राह तकती तुम्हारी आँखें 

और अंगड़ाई लेती हुई सिंदूरी शाम 

ज़िंदगी में जाने कहाँ से नयी उमंग भर 

जाती है 

थोड़ा और मुस्कुराने को मजबूर करती है 

सच तो ये है -हम तो कब का 

हार मान बैठे थे ज़िन्दगी से 

ये तुम्हारी कशिश है या

वो हमारे सिंदूरी शाम की ताज़गी 

जो दिल को कसकर थामे रखती है

और अपनी आँखों में चमक भरकर

हौले से कहती है 

यूँ ही मुसकुराया करो 

अभी तो शाम सिंदूरी होने बाकी है..!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance