Chandresh Chhatlani

Classics

5.0  

Chandresh Chhatlani

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सिकुड़ा हुआ समय

सिकुड़ा हुआ समय

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पृथ्वी की धुरी के इशारों पर

यूं तो नाचता है समय

विस्मृत क्षण हो गए धूमिल

कई दिनों से गुम था समय।


कितने ही वर्षों से ढूंढता

पूछता था जिससे वो कहता

“मेरे पास तो नहीं है समय...”

समय को खोजते खोजते

अपने प्रियजनों के हृदय की

सीमा को भी लांघ गया।


कहीं भी ना मिला समय

हार के लौटा घर में,

आश्चर्यचकित फिर हुआ मैं !

समय तो मेरी मुट्ठी में सिकुड़ा था

मेरे परिवार के हर सदस्य से

मिलने को आतुर था मेरा समय।


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