सीता की अग्नि परीक्षा कब तक ?
सीता की अग्नि परीक्षा कब तक ?
उस दिन भी --
"प्रकृति" रोई,दिशाएं" निशब्द "
धूं धूं कर जली "मानवता" थी
किया अट्टाहास "दानवता"ने
जब समा गई " सीता" धरा में
अनादिकाल से ----
पति-पत्नि का रिश्ता अटूट
विवाह नहीं "पावन - बंधन" है
फिर क्यों शक के "बी़ज़" पड़े
देना पड़े पत्नि को " अग्निपरीक्षा"।
"गृहप्रवेश" करवा मुस्कुराते
अपमानित कर अट्टाहास करें
"हवनवेदी" से "मंत्रोच्चारण" कर लावें "दहेजवेदी"में क्रूरता से जलावें
कब तक शंकालू "मानसिकता"?
बहुएं,बहनें,पत्नी, बेटियां
पगली घोषित की जावेगी ?
कब तक सड़कों पे "लाशें" मिलेगी?
कब तक नारी प्रताड़ित होती रहेगी?
कब तक आत्महत्यायें करती रहेंगी ?
अर्से बाद भी ,
आज खड़ी सोचती नारी
अपनी पहचान ढूंढ रही ,
चीख चीख कहती ,
मैं भी एक इंसान हूं
मांस का लोथड़ानहीं
गुलाम नहीं ,
किसी की भूख नहीं,प्यास नहीं ,
तरकारी, दाल, नहीं
काटा,बनाया,उबाला ,
निवाला नहीं,
पान नहीं,
खाया, चबाया , थूका ।
सम्मान करो,खरीदी हुई नहीं
गृहलक्ष्मी ,मां हूं,रौनक हूं,
मत अपमान करो
तुम्हारा घर, मेरा दिल टूटेगा।
होंगे स्वप्न लहूलुहान मेरे
बंद करो यह सिलसिला,
कब तक मैं
चढ़ूं बलि वेदी पर
देती रहूं अग्निपरीक्षा?
कानून भी चाहे ,
मेरे ही व्यक्तित्व में संशोधन ?
मुझे प्रताड़ित पुरुष,समाज करे
कलंकित भी मैं ?
सीता ने दी परीक्षा एक बार
मर्यादा पुरुषोत्तम को भी
दिया त्याज़ ,
रहे बिलखते "राम",
यहां हर पल ,हर घड़ी,हर दिन
" अग्निपरीक्षा"
जबकि पति नहीं है "राम"।
समान अधिकार दोनों के
तो भी
क्यों ? क्यों ? क्यों ?
आख़िर कब तक ?