सीने मे दबाए बैठे थे
सीने मे दबाए बैठे थे
सीने में दबाए बैठे थे
गम को भुलाए बैठे थे
खुद को समझाए रहते थे
बस हर दिन हर पल
यही कहते थे,
गुजर जाएगें ये दिन भी
जो मेरे न थे
गैरों को भी अपना मान के
दिल लगाए रहते थे,
झाँक कर जब अपने
गिरेबान में देखा तो
यहाँ अपने भी
हमको भुलाए बैठे थे।
लोग जो मेरे करीबी
हुआ करते थे
वो अक्सर ये कहते थे
खास हो तुम हमारे,
तुम्हारी दोस्ती के बिना
जिंदगी कैसे गुजारे
आज आती है हँसी
खुद पर ही जब,
देखता हूँ बदल कर रस्ता
वो दूर से हैं जा रहे
किसी को क्या दोष दूँ इसका
मेरी ही फ़ितरत होगी ऐसी,
कि छोड़ कर वो किस्सा
अधूरा जा रहे हैं
बदले बदले से लोगों को
हम नजर आ रहे हैं,
कल तक थे जो प्यार से
आज ताने सुना रहे हैं
लगता है मुझको कि
दिल लगाने की सजा पा रहे हैं।
हम तो बस जो वादा किया है
खुद से वो निभा रहे हैं
आप भी बता दो यारों
कब हम आपसे
नाराजगी जता रहे हैं...
