शून्यता
शून्यता
समुद्र तट पर बैठे
मैं उठती गिरती लहरों को
निहार रही थी।
बहुत दूर से उठती
ऊंची सी लहर
तट तक पहुंचते-पहुंचते
धीमी पड़ जाती।
पानी आगे तक आता
कई बार मेरे पाँव छू कर
लौट जाता।
समुद्र के किनारे
जब भी बैठती हूं
इस दृश्य को घंटों तक
निहारती रहती हूं,
आत्मसात करती रहती हूं।
पर उस दिन दूर बैठी
एक महिला ने
मेरा ध्यान आकर्षित किया
वह लगातार मुझे ही देख रही थी।
दूर से ही मैं उसके चेहरे की
उदासी भांप सकती थी।
वह अकेली ही बैठी थी।
मेरे साथ मेरी बहन थी
जो तैरते तैरते आगे तक
निकल गई थी।
कुछ समय ऐसे ही बीता
वह उठी और मेरी तरफ आने लगी।
दोनों हाथ जोड़
'नमस्ते जी' कहकर उसने मेरा अभिवादन किया।
इससे पहले मैं उसे बैठने को कहती वह मेरे समीप बैठ चुकी थी
समुद्र की तरफ पीठ करके।
'इंडियन।'
मैंने हां में सिर हिलाया
'घूमने आई हूं कैलिफोर्निया
बहन रहती है यहां।'
बहुत सुंदर थी वह
इकहरा बदन
लहराते बाल
तीखे नयननक्ष
पंजाबी बॉडी कट
हल्का मेक अप।
परन्तु उसकी सूनी आंखें
उसका उदास चेहरा
उसकी बात करने का ढंग
उसके बहुत परेशान होने की ओर
इंगित कर रहे थे।
किसी अजनबी से बात का सिलसिला आगे बढ़ाना
मुझे भी मुश्किल लग रहा था।
आखिर उसने पूछा कि
कितने दिन रुकेंगे।
अब बात चल पड़ी।
धीरे-धीरे उसने अपना मन
खोलना शुरू किया
पता चला
शादी कर यहां
अपने पति के घर आए
उसे दस वर्ष बीत गए हैं
पति की अच्छी जॉब है
दो बच्चे हैं स्कूल गोइंग
स्वयं सिंपल ग्रेजुएट है
यहां किसी किस्म की
जॉब नहीं करती,
घर पर ही रहती है।
कोई सखी सहेली नहीं
कोई दोस्त मित्र नहीं।
पति ने कुछ ही वर्षों में
अपने सारे भाई बहनों को यहां अमेरिका में बुला लिया है।
अपने मम्मी पापा को भी।
जब भी वह अपने माँ बाप से मिलने के लिए
भारत आना चाहती है
पति मना करता है
अभी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है,
बच्चे छोटे हैं
मम्मी पापा को कौन देखेगा
वह तरस गई है
अपनों से मिलने को।
मैं देख पा रही थी
उसकी सूनी आंखों से
छलकते आंसू।
मुझे कोई सान्त्वना के
शब्द सूझ नहीं रहे थे।
वह लगातार बोल रही थी,
किसी से मन की बात
शेयर करने को
कोई आसपास है ही नहीं।
कैलिफोर्निया कॉस्मापॉलिटन है
जिसमें दुनिया भर से आए
लोग रहते हैं
घर के एक तरफ चाइनीज़
दूसरी तरफ तेवानी
तीसरी तरफ कुरियन।
दूसरे छोर पर रेड इंडियन
कोई इंग्लिश कोई फ्रैंच
यानि तरह तरह के
देशी विदेशी लोग।
पति की अपनी लाइफ है
उसका शाम बिताने का
अलग ढंग है
हफ्ते में पांच दिन काम
शनिवार इतवार पार्टी।
बच्चे अपने स्कूल व दोस्तों में मग्न।
उसने अपने मन का सारा दर्द
मेरे सामने उंडेल दिया।
उसने देखा उसका पति
जोगिंग के बाद लौट रहा है।
बोली, आज बहुत दिन के बाद
मन हल्का हुआ
आपसे बात करके।
न जाने मैं अपनों से
कब मिल पाऊंगी
पर आज आपसे मिल कर
मुझे ऐसा लगा
मेरी बड़ी दीदी मिल गई है।
थैंक्स,धन्यवाद, शुक्रिया,।
वह उठी और पति के साथ चल दी।
मैं सोचने पर मजबूर थी।
हमें हर चीज़ की
कीमत अदा करनी पड़ती है।
पश्चिमी आकर्षण व
विदेशी सुख सुविधा के लिए
हम क्या कुछ खो देते हैं।
घनिष्ठ व समीपी रिश्तों के दरमियान भी आ जाती है
एक बड़ी सी शून्यता है।
