यहाँ अहं को विसर्जित करती हूँ, इसलिए मैं शून्य हूँ... यहाँ अहं को विसर्जित करती हूँ, इसलिए मैं शून्य हूँ...
क्या भारी कदमों से कोई मंजिल को छू भी पाएगा। क्या भारी कदमों से कोई मंजिल को छू भी पाएगा।
हे गुरुवर ! जीने का सहारा तेरा नाम रे। और किसी से भी कुछ न कोई आस रे।। हे गुरुवर ! जीने का सहारा तेरा नाम रे। और किसी से भी कुछ न कोई आस रे।।
कभी दुश्मन से सर कटवाता है, कभी घर में ही चीर दिया जाता है। कभी दुश्मन से सर कटवाता है, कभी घर में ही चीर दिया जाता है।
अब कुछ और खोने का डर नही, जो कभी कहने को था मेरा। अब कुछ और खोने का डर नही, जो कभी कहने को था मेरा।
पर दौर जब बदलता है जो शून्यता दिखाई पड़ती है उसमें भाव भी भरने लगते हैं पर दौर जब बदलता है जो शून्यता दिखाई पड़ती है उसमें भाव भी भरने लगते हैं